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श्रीवास्तव ज्योतिष
कुंडली देखने के दिशा निर्देश एवं नियम, 
(www.shrivastavajyotish.astha.net अन्य दिशा निर्देश एवं नियम उपलब्ध)

ग्रहों के फल  : लिखित भविष्यफल में हर ग्रहों के फलो का वर्णनन् एवं विवेचना की गई हैं | इन फलों का प्रभाव स्थिर रूप से हर समय जातक के ऊपर पड़ता रहता है | हर व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन होता रहता है , यह परिवर्तन महादशा, अंतरदशा, प्रत्यांतर दशा के अनुसार होता है | महादशा को किसी कार्यालय के उच्च अधिकारी, अन्तर्दशा को अधीनस्थ अधिकारी तथा अंतरदशा को अधीनस्थ कर्मचारी की तरह माना जाता हैं | इनका प्रभाव उसी तरह पड़ेगा जैसा कार्यालीन पद्धति में होता है | ग्रहों की क्षमता भी उनके अंशो के ऊपर निर्भर करती है | 12 से 18 अंश के बीच ग्रह पूर्ण प्रभावकारी होता हैं | 3 से 12 अंश एव 18 से 27 अंश के मध्य ग्रह मध्यम फल देता हैं,  1 से 3 तथा 27 से 30 अंशो के ग्रह निष्क्रिय हो जाते हैं | हर कुंडली में ग्रह दो भाग में विभाजित होते हैं | कुछ ग्रह शुभ फल एवं कुछ अशुभ फल देने वाले रहते हैं | शुभ अशुभ फल ग्रहों के अंशो के अनुसार प्रभावित करता हैं | अशुभ फल देने वाले ग्रह अंशो में कमजोर हो जाये तो अशुभ फल भी कमजोर होनें लगेगा लेकिन शुभ फल देनें वाले ग्रह कम अंश में हों तो शुभ फलों में कमी आ जायेगी | इन दशाओं में ग्रह को शैशव, वचपन, युवा, अधेड़ एवं अंतिम अवस्था में माना जाता हैं | जीवन में मुख्य परिवर्तन इसी अनुसार आता हैं | ग्रह आपस में मित्र सम एवं शत्रुवत व्यवहार करते हैं दशाओं में इसका प्रभाव भी पड़ता हैं | यदि मित्र युति पड़े तो बहुत अच्छा, सम में ठीक तथा शत्रु में मिश्रित फल मिलने के संभावना होती हैं |

दशाएं देखने की विधि  - 

मुख्य रूप से विशोतरी दशा देखना का प्रचलन है, मेरे अनुभव के आधार पर मैंने भी यही पाया हैं | नो ग्रहों का एक क्रम 120 वर्ष का होता | महादशा में पूरे नो ग्रहों के अंतरदशा तथा अंतरदशा में नो ग्रहों की प्रत्यांतर चलती है | यह आपकी कुंडली में दी गई हैं | प्रथम प्रष्ठ पर महादशा तथा अंतरदशा तथा द्वितीय प्रष्ठ पर महादशा में अंतरदशा तथा अंतरदशा में प्रत्यांतर दी गई हैं | इसमें ऊपर ही प्रारंभ का एवं समाप्त होने का दिनांक उल्लेखित हैं | हर ग्रह के सामने जो दिनांक लिखा हैं, वह उस दिनांक तक उसके ऊपर की दिनांक से चलेगी | 

उदाहरण - विंशोतरी दशा (महादशा)

         राहू (18 वर्ष)                           गुरु (16 वर्ष )      
        ____________                     ____________                   
से    07.10.1977                           07-10-1995   
तक     07.10.1995                           07-10-2011    
       ____________                      ____________
                                
अंतरदशा

       राहू  19-06-80    तक                गुरु  25-11-97 तक
       गुरु 13-11-82      nbsp;
तक               शनी 07-06-00  तक
      शनि 19-09-85    
तक                 बुध 13-09-02   तक           
कुंडली में इस प्रकार लिखा हैं इसको इस प्रकार देखेगें 
रहू - 18  वर्ष की 07-10-1977 से 07-10-1995 तक महा दशा चलेगी जिसमे राहू की अन्तर्दशा 07-10-1977 से 19-06-1980 तक रहेगी | 
इसी प्रकार सें अंतरदशा में प्रत्यांतर दशा की सरणी देखेंगे | 

गौचर  -        वर्तमान में कौन सा ग्रह किस राशि में चल रहा उसका प्रभाव भी जातक के ऊपर पड़ता हैं | यह प्रायः चन्द्र राशि से देखा जाता हैं | मतान्तर से लग्न के अनुसार भी देखने की पद्धति हैं | मेरे अनुभव से चन्द्र राशि से देखना सटीक लगा है | इसमें अष्टकवर्ग का विशेष महत्व हैं | सर्वाष्टकवर्ग की सारणी कुंडली में दी गई हैं | इसमें हर ग्रह को प्रत्येक राशि में कितने अंक प्राप्त हुए तथा उस राशि का कितना मूल्याँकन  हैं | उसी प्रकार से उस ग्रह का प्रभाव प्राप्त होगा हर ग्रह को एक राशि में अधिकतम 8 अंक मिलते हैं | 4 अंक पर ग्रह सम प्रभाव तथा 4 से कम पर अशुभ प्रभाव तथा 4 से ऊपर अच्छा प्रभाव प्राप्त होता हैं | प्रभाव उस प्रकार का होगा जैसा ग्रह दे रहा हैं | इसके बाद राशि का मूल्याँकन देखा जाता हैं | 21 अंक से ऊपर ठीक रहता हैं तथा इससे कम अशुभ फल होता हैं | इसके बाद एक ग्रह को सभी राशियों में कितने अंक मिले यह देखना चाहिये यदि 48 से ऊपर हैं तो अच्छा अन्यथा अशुभ है | 

दशाओं में ग्रह स्थिति का प्रभाव - महादशा के स्वामी से अन्तर्दशा का स्वामी 6, 8, 12 में स्थित हैं तो कुछ अशुभ फल देगा भले ही वह मित्र ग्रह हो , यदि शत्रु ग्रह तो बहुत अशुभ फल देगा इसी प्रकार महादशा से अन्तर्दशा , अन्तर्दशा से प्रत्यांतरदशा के स्वामी केंद्र 1, 4, 7, 10 में तथा 1, 5, 9, त्रिकोण में शुभ फल देगें यदि वह आपस में मित्र है तो अधिक शुभ फल देंगे |

वर्षफल - तीसरा प्रभाव वर्षफल का होता है |

ग्रहों की दृष्टिया- ग्रहों की द्रष्टि भी प्रभाव डालती हैं, किस ग्रह को किस राशि पर पड़ रही हैं , उसके स्वामी से ग्रह का रिश्ता कैसा | अर्थात शत्रु मित्र तथा सम एवं स्वक्षेत्री उच्च नीच हैं | हर ग्रह अपने से सातवें घर को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं | मंगल 4 एवं 8 गुरु 5 एवं 9 शनि 3 एवं 10 वे घर को अतिरिक्त रूप से पूर्ण दृष्टि डालता हैं | एक साथ बेंठे होने जैसा फल देती है |