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चश्मा प्रस्तुत कहानी में कहानी के पात्र दादा जी विदेश में अपने लड़के के यहाँ जाते हैं | वहां बर्फ से भीगा मफलर और दस्ताने और चमड़े का लंबा कोट स्टैंड पर रखते हैं और अपने पोत्रो, धनी और शाशवत से बात करते हैं जिसमे शाशवत धनी की शिकायत करता है, कि उसने फ़ोन सुने बिना ही कह दिया की दादा जी नहीं हैं और काट दिया | दादा जी कुर्सी पर ही पैर लम्बे कर लेट से जाते हैं तभी शाशवत धनी के बारे में बताता है कि वह आपकी नकल करता है कहता है कि दादा से भी अच्छी कविता लिखूंगा | बातचीत के दोरान दादा जी को थकान महसूस होती हैं | वह ओस्लो हवाई अड्डे के बाहर बर्फ में फिसल गये थे | उन्हें मदद दी गई | जहाँ उनके चश्मे का लेंस गायव मिलता हैं | उनका लड़का शिशिर चश्मे की दुकान पर लेकर जाता है | जहाँ डॉक्टर बताता है कि करीब 6000 क्रोनर लगेंगे यानि 36000 रूपये से भी अधिक | दूसरी दुकानों पर भी यही हाल था | दादा जी चश्मा बनबाने से मना करते हैं | दादा जी धनु से कहानी सुनते हैं वह शेर की कहानी सुनाता है जिसमे शेर का बच्चा एक भेड़ को लोमड़ी द्वारा सताये जाने पर उस भेड़ को बचाता है | जिसमे उसके मम्मी पापा ने 50, 50 क्रोनर चाकलेट के लिए दिये | धनी की इस कहानी को सुन कर शिशिर धनी को 50 क्रोनर का नोट देता है जो किनारे से थोड़ा फटा और मेला रहता हैं | और दादा जी भी उसे 50 क्रोनर देते हैं | शाशा बताता हैं की आज कल धनी दादी, मम्मी को ढेर सारी कहानी सुनाता हैं और कहता हैं की इनाम में ढेर सरे क्रोनर मिलेंगे | जिससे दादा जी का चश्मा खरीद कर लायेंगे | दादा जी तीन सप्ताह बाद दिल्ली लौट आते हैं और चश्मा बनवा लेते हैं | दादा जी बहुत दिन बाद अपने चमड़े के हेंड बेग की भीतर वाली जेब में कुछ टटोल रहे थे तो एक लिफाफे में बहुत सारे रेखा चित्र दिखे और उनके साथ पचास - पचास क्रोनर के दो नोट भी रखे थे जिनमें से एक का किनारा थोड़ा-सा फटा-फटा-सा था, कुछ मैला-सा | - हिमांशु जोशी
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